Abstract
प्राचीन काल में हिमाचल के मंडी जिले में, समुद्र तल से 9000 फुट की ऊंचाई पर स्थित, पराशर ॠषि की तपोस्थली रही पराशर झील में एक तैरता हुआ द्वीप है। ऊंचे पहाड़ों के मध्य में स्थित इस झील पर आने वाले पर्यटक इस तैरते हुए द्वीप को देखकर हैरान रह जाते हैं, क्योंकि ये द्वीप झील में अपनी जगह लगातार बदलता रहता है। हालांकि, ज्योतिष, आयुर्वेद, वनस्पति विज्ञान, भूविज्ञान, जल-विज्ञान और कृषि सहित, ज्ञान के चौदह क्षेत्रों के विशेषज्ञ महान ॠषि पराशर के लिए इस तैरते हुए द्वीप का निर्मांण करना कोई कठिन काम नहीं रहा होगा। आज भी श्रीनगर की विशाल डल झील में बहुत से ऐसे तैरते हुए द्वीप बनाए जाते हैं और उनका उपयोग सब्जियाँ उगाने के लिए किया जाता है। सम्भव है कि प्राचीन ऋषियों ने, जो ऋषि पराशर के समकालीन रहे होंगे, कश्मीर में तैरते हुए सब्जियों के खेत बनाने की लंबे समय से चली आ रही कला का आविष्कार किया होगा। प्राचीन ऋषियों ने न केवल अपने आश्रमों और स्थलों में तैरते द्वीप जैसी रहस्यमय कलाकृतियों का निर्मांण किया, बल्कि उन्होंने इन स्थलों को रहस्यमय नाम भी दिए जो आने वाली पीढ़ियों के लिए सुराग या संकेत के रूप में काम करते रहें। पराशर झील में तैरते हुए द्वीप का नाम टहला है, जो राजस्थान के अलवर जिले की उस बस्ती का नाम भी है, जहाँ से सरिस्का टाइगर रिजर्व के कठिन पहाड़ी क्षेत्र में प्रवेश करने का मुख्य मार्ग हो कर गुजरता है। जब पांडवों को अपने निर्वासन के अंतिम वर्ष के दौरान अज्ञातवास में छिपे रहना था, तो सरिस्का जंगल के उबड़-खाबड़ इलाके ने उन्हें सुरक्षित आश्रय प्रदान किया था। इस सफल प्रयास में पराशर ॠषि ने तथा उनके पुत्र और वेदों के रचेता मुनि वेद व्यास ने पांडवों की सहायता की थी, तथा महर्श्री पराशर का धाम भी सरिस्का के प्रवेश मार्ग पर टहला के समीप ही स्थित है।